कभी जनसंघ के लिए अपने सर्वस्व न्योछावर कर देने वाला सिंधिया घराना जो पिछले दो सौ सालों से शासन तंत्र पर हावी है क्या भाजपा के लगातार बढ़ते बर्चस्व के इस दौर में राजनीतिक स्तर पर हाशिए पर जा रहा है. यह सवाल कुछ अरसा पहले मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा सिंधिया घराने के इतिहास को लेकर दिए गए बयान के बाद से सियासत के गलियारों में गूंजने लगा था हैरानी तो इस बात पर है कि भाजपा की तरह कांग्रेस में भी सिंधिया घराने को लेकर पेशोपेश है काग्रेस के युवा तुर्क कहलाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने नाम के आगे से काग्रेसी होने का ख़िताब हटाकर इन अटकलों को नई हवा दे दी है की वे कोई नया राजनीतिक ठिकाना तलाश सकते हैं .दरअसल ,कांग्रेस नेता और पार्टी महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ट्विटर में अपना स्टेटस बदलने के कारण सुर्ख़ियों में हैं. मध्य प्रदेश की राजनीति में महाराज के नाम से संबोधित किए जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अचानक अपने नाम के साथ public servant और cricket enthusiast लिखा है. जबकि पहले पूर्व सांसद गुना, पूर्व केंद्रीय मंत्री-ऊर्जा-वाणिज्य और उद्योग लिखा था.
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्विटर पर अपना स्टेटस क्या बदला, यहां से वहां तक हलचल मच गई. बीजेपी ने उनकी राजनैतिक स्थिति पर तंज कसा तो कांग्रेस ने शिवराज सिंह का स्टेटस याद दिलाने में देर नहीं की. कांग्रेस नेताओं ने कहा, 'ट्वीटर पर अपना स्टेटस बदलना किसी का भी व्यक्तिगत अधिकार है, इसमें इतना शोर मचाने की क्या ज़रूरत!'स्टेटस बदलते ही बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, 'लंबे समय से ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस में उपेक्षा हो रही है.' सिंधिया के बीजेपी में आने की अटकलों पर उन्होंने कहा, 'मेरी जानकारी में ऐसी कोई बात नहीं है.'
केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते बोले, 'ये सब जानते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को क्या मानते हैं. सिंधिया एक राजघराने के व्यक्ति हैं. जहां व्यक्ति जन्म लेता है उसके आचार विचार नहीं बदलते.' Bjp में आने की अटकलों पर कुलस्ते ने कहा, 'Bjp का दरवाजा हमेशा खुला है, हम सबका स्वागत करते हैं.'
तो क्या इसका मतलब ये निकाला जाये की जैसी चुनोती उनकी दोनों बुवाओं वसु न्धरा और यशोधरा राजे को भाजपा में मिल रही है कुछ उसी तरह की स्थितियों से कांग्रेस में जूनियर सिंधिया भी जूझ रहें है . यह कमोबेस इससे भी साबित है की अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद जूनियर सिंधिया मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष नही बन पाए हैं शायद यही वजह है की उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से पूर्व सांसद शब्द ही हटा दिया हैं.क्या ये सिंधिया घराने को मिल रही नई राजनीतिक चुनौती का संकेत नहीं है? आइये इन ताज़ा हालातों को समझने के लिए जरा अतीत में चलते हैं ....
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सोमदत्त शास्त्री
''ऐसे बेटे का सिर तो हाथी के पांवों तले कुचलवा देना चाहिए'' कोई तीन दशक पहले 'अम्मा महाराज' अर्थात राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपने सर्वाधिक प्रिय इकलौते पुत्र माधवराव सिंधिया को लेकर जब यह निर्मम टिप्पणी की थी तब सहसा राजनीतिक क्षेत्रों में सनाका खिंच गया था. राजमाता संघर्ष के उस कठिन दौर में माधवराव का साथ चाहती थीं. वे इन्दिरा गांधी की नीतियों से खिन्न होकर कांग्रेस से बहुत दूर जा चुकी थीं. मध्यप्रदेश में असंतुष्ट कांग्रेसियों के साथ गोविन्द नारायण सिंह की अगुवाई में संविद सरकार के अल्पकालिक प्रयोग के बाद उन्हें नए सिरे से अपनी राजनीतिक जमीन सिरजने की लड़ाई लडऩी पड़ रही थी. तब आरएसएस और जनसंघ आज सरीखे समर्थ और सम्पन्न नहीं थे. ऐसे में अपना 'खून' भी साथ छोड़ दे तो कैसी पीड़ा हो सकती है, कुछ उसी तरह के आत्ममंथन से गुजरने के बाद 'राजमाता' ने माधवराव सिंधिया के लिए आवेश में भले ही यह कह दिया हो, लेकिन 'माता-पुत्र' के अबोले के बावजूद इस घराने के किसी भी सदस्य ने अलग-अलग पार्टियों में होकर भी एक-दूसरे के खिलाफ कभी भी आमने-सामने चुनावी मुकाबला नहीं किया. इस बात का विवेचन जरा मुश्किल व पेचीदा है कि राजनीति में 'ग्वालियर घराने' के महिला और पुरुषों की राहें जुदा क्यों रहती आई हैं
ग्वालियर के सिंधिया घराने का इतिहास रहा है कि यहां की महिलाएं हमेशा पुरुषों के विपरीत दिशा में चलती चली गईं हैं भले ही वह रास्ता राजनीतिक लिहाज़ से जोखिम भरा ही क्यों न रहा हो .मसलन, राजमाता जब जनसंघ के साथ थीं तब माधवराव सिंधिया कांग्रेस के साथ थे. ज्योतिरादित्य कांग्रेस के साथ हैं तो उनकी दोनों बुआ भाजपा में हैं.कुछ लोग इसमें राजघरानों की छुपी हुई जटिल कूटनीति भी सूंघते है लेकिन एक तथ्य तो साफ है कि आजादी के बाद की लोकतांत्रिक सरकारों में सिंधिया घराने का वैसा ही दखल बरकरार रहा जैसा राजे-रजवाड़ों के दौर में कभी हुआ करता था. पार्टियां भले बदली हों लेकिन सरकारों की नब्ज पर इस घराने का हाथ लगातार बना रहा.
कुछ राजनीतिक टीकाकार मानते हैं की 1947 के आसपास की परिस्थितियों में लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजमाता सिंधिया का जनसंघ और हिंदूवादी राजनीति को खड़ा करना साहसिक पहल थी .इसे उस संक्रमणकाल का सही फैसला भी मान सकते हैं क्योकि लोकतान्त्रिक सिस्टम में भी सिंधिया परिवार के वारिसों की सफलता सर्व विदित है. एक बेटी पूरे राजस्थान की शासक है तो दूसरी बेटी मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य की केबिनेट मिनिस्टर. नेपाल में वैवाहिक संबंध स्थापित कर सिंधियाओं ने भारत के किन्हीं भी संभावित संकटकालीन हालातों में सुरक्षित रहने का ठिकाना तैयार किया था जिसका फायदा 1977 के आपातकाल में माधवराव को नेपाल भेजकर उठाया भी गया था उस वक्त राजमाता विजयाराजे दिल्ली सल्तनत के निशाने पर थीं लेकिन एक बहादुर मराठा रानी की भांति उन्होंने हार नहीं मानी .इतिहास गवाह है कि सिंधिया वंश के कम ही पुरुष शासक लंबी आयु पाते हैं. संभवतः माधवराव जी की अकाल मृत्यु ने परिवार की महिलाओं को राजनीति में सक्रिय भूमिका लिखने का अवसर दिया. वैसे माधवराव को राजीव गांधी की दोस्ती कांग्रेस में खींच ले गई थी. माधवराव, अपने घराने में सरदार आंग्रे के जबरदस्त दखल से इतने खिन्न थे कि राजमाता से दूरी बनाने में लगे रहे. राजमाता को पुत्र की यह दूरी कबूल हुई पर चाणक्य कहलाने वाले सरदार आंग्रे को हटाना कबूल नहीं हुआ. यह व्यक्ति ताजिंदगी 'राजमाता' के इर्दगिर्द साए की तरह साथ रहा और पारिवारिक कलह तथा राजघराने की अरबों की संपदा संबंधी विवादों व मुकद्दमे बाजियों का कारण भी बना लेकिन दूसरी तरफ बताते हैं जनसंघ और आरएसएस में बर्चस्व स्थापित करने में 'राजमाता' का साथ अकेले सरदार आंग्रे ने ही दिया.राजमाता के लिए रियासत का यह पुराना सरदार हमेशा अभेद्य कवच बना रहा . जो भी हो इसने माता-पुत्र की राजनीतिक दिशाएं कुछ ऐसी बदलीं कि उसका प्रभाव आज भी इस घराने पर साफ दिखाई देता है. ज्योतिरादित्य कांगेस में हैं जबकि उनकी दोनों बुआ राजमाता की पुत्रियां वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे भाजपा में सक्रिय हैं. अजब संयोग है कि दोनों ही तलाकशुदा हैं. वसुंधरा राजे ने अपने पति धौलपुर राजघराने के युवराज को तलाक दे दिया था जबकि यशोधरा ने भी अपने डाक्टर पति को तलाक देकर राजमाता की राजनीतिक विरासत सहेजना मुनासिब समझा. वे पहले सांसद रहीं फिर विधायक चुनीं गईं और राज्य सरकार में मंत्री हैं. आने वाली पीढ़ी की दिशा क्या होगी यह भविष्य के गर्भ में है,
दो साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगभग चौकाने वाले अंदाज़ में भिंड जिले की अटेर विधानसभा सीट पर उपचुनाव प्रचार के दौरान सिंधिया घराने पर जो शाब्दिक हमला बोला था वह हालांकि केवल ज्योतिरादित्य को लेकर ही था लेकिन मिसफायर कुछ ऐसा हुआ की तोप का मुहाना वापस भाजपा की जानिब तन गया. मुख्यमंत्री की टिप्पणी को कांग्रेस ने हाथोंहाथ लेते हुए भाजपा से ही सवाल कर डाला कि उनके सरकार में मंत्री यशोधराराजे और राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधराराजे के बारे में उनकी क्या राय है. कांग्रेस नेता और मंत्री गोविन्द सिंह ने तब कहा था – “जिस पेड़ को राजमाता ने सींचा था उस पेड़ के फल खा रहे बीजेपी नेताओं को ऐसी बात करते समय शर्म आना चाहिए.ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए पशोपेश की घडी थी फिर भी उन्होंने कहा - मुख्यमंत्री विकास नहीं बल्कि ओछी राजनीति कर रहे हैं, इसके अलावा मैं कुछ नहीं कहूंगा लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव का कहना था कि मुख्यमंत्री जिस भाषा का उपयोग कर रहे हैं, उससे तो भाजपा की संस्थापक राजमाता सिंधिया का ही अपमान हो रहा हो रहा है. मुख्यमंत्री को गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा द्वारा स्वर्गीय राजमाता सिंधिया के बारे में लिखी राजपथ से जनपथ नाम की पुस्तक भी पड़ना चाहिए. उनकी सारी गलत फहमी दूर हो जाएगी. सिंधिया राजपरिवार के घोर विरोधी और महल के खिलाफ खुलकर बोलने वाले शिवराज सरकार के ही मंत्री जयभान सिंह पवैया हालाँकि इस मामले पर पूरी तरह चुप्पी साधे रहे और केवल इतना ही बोले कि कुछ दिन बाद बात करूंगा .लेकिन प्रदेश के दो वरिष्ठ भाजपा नेता रघुनंदन शर्मा और सरताज सिंह ने जरुर कहा की -राजमाता के योगदान को भुलाया नही जा सकता .उज्जैन के कांग्रेस नेता पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू ने यशोधराराजे को एक पत्र लिखकर सवाल उठाया कि यह ऐतिहासिक सच है कि सिंधिया राजघराने ने अंग्रेजों का साथ दिया मुख्यमंत्री के बयान को लेकर आपकी जो प्रतिक्रिया मीडिया में सामने आई, उससे मैं व्यथित हूं .इतिहास जानने और पढ़ने वाले सभी को मालूम है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे के पास जो पिस्टल मिली थी, उस पर सिंधिया रेजीमेंट लिखा था. इस पर आपको अफसोस ही नहीं करना चाहिए बल्कि जनता से माफी मांगनी चाहिए. पूर्वजों की गलती को स्वीकारने में हमें शर्म नहीं आनी चाहिए।
कांग्रेस की निंदा पर यशोधराराजे इतनी भावुक हो उठीं थीं कि उन्होंने फेसबुक पर स्व. विजयाराजे की पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी साथ वाली फोटो पोस्ट करके कहा "जो लोग सिंधिया परिवार की देशभक्ति पर सवाल खड़े रहे हैं, वे शायद यह भूल गए हैं कि बीजेपी आज जहां खड़ी है, उसका रोडमैप मेरी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने ही तैयार किया था. यशोधरा ने पुराने दिनों की याद ताज़ा करते हुए बताया , हमें याद है कि उस वक्त पार्टी की हालत क्या थी, राजमाता ने इस पार्टी के लिए क्या नहीं किया.यशोधरा ने कहा, "जब हम छोटे थे तो राजमाता से मिल भी नहीं पाते थे हमें बताया जाता था कि देशसेवा के लिए अम्मा दौरे पर हैं. यशोधरा राजे ने कहा, "राजमाता ने बीजेपी को खड़ा करने के लिए मेरे और बड़ी बहन (वसंधुरा राजे, सीएम राजस्थान) के हिस्से के गहने बेचकर इलेक्शन में गाड़ियां भेजीं. महल में ज्वैलरी की नीलामी कर पार्टी को फंड दिया. पार्टी के लोगों के पास जब चलने-फिरने के लिए गाड़ियों की कमी होती थी तो अम्मा नई-नई गाड़ी खरीद कर देती थीं, जब वो गाड़ियां वापस आती थीं तो किसी के दरवाजे नहीं होते थे तो किसी की सीट फटी होती थी तो किसी की शक्ल और सूरत ही बदली होती थी." लेकिन अब जब सरनेम और परिवार पर अपने ही लोग आरोप लगाते हैं तो दुख होता है. मैं यह समझ ही नहीं पा रही हूं कि यह किस तरह की राजनीति है,इसे किस तरह से बर्दाश्त किया जा सकता है सीएम शिवराज सिंह के बयान के बाद सिंधिया परिवार से भाजपा में राजनीति कर रही राजस्थान की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे, मप्र की उस वक्त की मंत्री माया सिंह ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने आपत्ति दर्ज कराई .मप्र व केंद्रीय भाजपा के अलावा आरएसएस ने भी इस बयान को गलत माना . लेकिन इसी बीच राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त मप्र भाजपा के पूर्व मीडिया प्रभारी और राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष डॉ. हितेश वाजपेयी ने भी बयान दे डाला कि सिंधिया राष्ट्रीय शर्म का विषय रहे हैं. डॉ. हितेश वाजपेयी यहीं नही रुके . एक निजी चैनल पर बहस में भाग लेते हुए वाजपेयी ने कहा कि मैं एक और रहस्योद्घाटन करना चाहता हूं कि क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कैलाश विजयवर्गीय के स्थान पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को मदद कर चुनाव जिताया था. इसके बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक था कि डॉ. वाजपेयी ने अति उत्साह में शिवराज का बचाव किया था या उन्हें एक नये राजनीतिक झमेले में उलझा दिया था. जो भी हो , वाजपेयी के इस बयान के बाद अचानक यशोधराराजे सिंधिया ने अटेर और बांधवगढ़ उपचुनाव में प्रचार करने जाने का अपना कार्यक्रम निरस्त कर दिया और यहां तक कह डाला कि वे पार्टी में घुटन महसूस कर रही हूँ . यशोधरा का यह बयान मायने रखता था इन्ही दिनों शिवपुरी की प्रभारी कलेक्टर नेहा मारव्या से एक मामले में उनकी तनातनी के चटखारे दार किस्से खूब चर्चा में रहे .कलेक्टर उनके कार्यक्रमों में नही जातीं. उनकी उपेक्षा करती थी . इसी तरह मंत्री जयभानसिंह पवैया परिवार पर तंज़ कसने का मौका नहीं छोड़ते .थे
सिंधिया परिवार के अंग्रेज़ी हुक़ूमत से रिश्ते
सिंधिया परिवार के अंग्रेज़ी हुक़ूमत के साथ रिश्ते कैसे थे? क्या 1857 की लड़ाई में उन्होंने किसी पक्ष का साथ दिया या तटस्थ बने रहे?यह परिवार लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि के तौर पर ही नहीं, एक सामंत के तौर पर भी इलाक़े में लोकप्रिय तो रहा है .लेकिन सिंधिया परिवार अंग्रेज़ों की आवभगत में भी आगे था.इनके यहां खाने की एक विशाल मेज पर चांदी की एक रेलगाड़ी थी, जो चलती रहती थी और मेहमान उसमें से अपने लिए पकवान लेते थे. सिंधियाओं ने अंग्रेजों से शानदार उपाधियां पायीं. उतनी ही जितनी मुगल बादशाह से पायीं.लंदन के गलियारों तक में सिंधिया शासक को सम्मान की नजरों से देखा जाता था. पश्चातवर्ती सिंधिया जीवाजीराव सिंधिया के आगे ही 'जार्ज' शब्द लगता था. जो ब्रिटिश राजा के नाम का एक हिस्सा था. देश की आजादी के बाद सत्ता हस्तातरण के समय मौन और तटस्थ रहना संक्रमणकाल में अपनी संपत्ति बचा लेना अपने आप में बड़ी जीत है लेकिन इधर कांग्रेस और भाजपा दोनों के भीतर से जिस तरह एकाएक 'सिंधिया राजघराने' को लेकर तल्ख स्वर उभरे हैं, उसे शुभ संकेत नहीं कह सकते.
किस्सा यशोधरा का
सिंधिया राजघराने में मप्र में यशोधरा राजे चर्चा में रहीं हैं वे राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे की छोटी बहन हैं और उनके भतीजे ज्योतिरादित्य कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं . जीवाजी राव सिंधिया और राजमाता विजयाराजे सिंधिया की बेटी यशोधरा का जन्म 19 जून 1954 में लंदन में हुआ था. यशोधरा ने गुना सीट से 1998 में उन्होंने पहली बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा इसमें जीत दर्ज कर वह एमएलए बनीं 2003 में यशोधरा लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करने में कामयाब रहीं 2003 में बनी बीजेपी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया.2007 में ग्वालियर सीट पर हुए बाई इलेक्शन में जीत दर्ज कर वे एमपी बनीं.नवंबर 2006 में मप्र सरकार ने बाकायदा एक गजट नोटिफिकेशन कर उनके लिए सभी सरकारी दस्तावेज में 'श्रीमंत' शब्द इस्तेमाल करने का आदेश दिया था.हालांकि, विवाद बढ़ने पर इसे वापस ले लिया गया इमरजेंसी के बाद यशोधरा राजे सिंधिया की मुलाकात मुंबई में डॉ. भंसाली से हुई .बहुत कम लोग जानते हैं कि सिद्धार्थ अमेरिका नहीं मुंबई के रहने वाले थे पेशे से कार्डियोलॉजिस्ट भंसाली से शादी के लिए उनकी मां विजयाराजे और भाई माधवराव तैयार नहीं थे, लेकिन बाद में हामी दे दी शादी के बाद यशोधरा राजे और डॉ. भंसाली अमेरिका के लुसियाना स्टेट में जाकर रहने लगे. यहां पर यशोधरा राजे सिंधिया के दो बेटों अक्षय राजे, अभिषेक और एक बेटी त्रिशला का जन्म हुआ. बताते हैं कि बेटी त्रिशला के जन्म के बाद यशोधरा और डॉ. भंसाली के बीच मतभेद बढ़ने लगे और आखिरकार 1994 में दोनों के बीच तलाक हो गया.तलाक के बाद यशोधरा राजे सिंधिया अपनी मां विजयाराजे के पास आ गई और फिर बीजेपी से जुड़ गईं.डॉ. भंसाली अमेरिका के लुसियाना में ही रहते हैं और साथ में तीनों बच्चे भी वहीं रहते हैं डॉ. भंसाली एक अच्छे डॉक्टर होने के साथ-साथ एंटीक के कारोबार से भी जुड़े हुए हैं
यह कहा था शिवराज सिंह चौहान ने
"1857 की क्रांति में यह भिंड की जनता महारानी लक्ष्मीबाई के साथ खड़ा रही और अंग्रेजों के खिलाफ रही. मैं यह भी जानता हूं कि यहां अंग्रेजों के साथ मिल सिंधिया ने बड़े जुल्म ढ़ाए हैं, लेकिन लोगों ने बहादुरी के साथ इन जुल्मों का मुकाबला किया . अंग्रेजों का साथ इस इलाके ने कभी नहीं दिया
(यह ब्यान अटेर असेंबली के बाय इलेक्शन में भाजपा कैंडिडेट अरविंद भदौरिया के सपोर्ट में कहा था)
बयान के राजनीतिक मायने
चुनाव से पहले सिंधिया की घेराबंदी
दरअसल मप्र में ,2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के संभावित चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया को घेरने की कोशिश शुरू कर दी थी यूँ तो शिवराज सिंह चौहान सीधे हमले करने से बचते रहे हैं, लेकिन अटेर उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सिंधिया का नाम अंग्रेजों के साथ जोड़कर नया मुद्दा छेड़ा दिया था विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस मप्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रोजेक्ट करती तो प्रदेश में राजनीति गरमाती. इसलिए शिवराज ने सीधे सिंधिया सरनेम को आगे रखकर उनकी देशभक्ति पर सवाल खड़े किए . इससे पहले तक वह कांग्रेस व उनके महाराजा छवि के खिलाफ ही बयान देते रहे .
मुझे दबाने की कोशिश करते हैं लोग
"लोग कुछ भी कहने से पहले ये कैसे भूल जाते हैं कि राजमाता ने कैसे इस पार्टी को खड़ा करने में अपना रोल निभाया था. अब पार्टी बदल गई है और लोग भी बदल गए हैं. वे सब कुछ भूल चुके हैं, मैं जब भी इस तरह की बातों का विरोध करती हूं तो लोग मुझसे कहते हैं कि आपको क्या लेना-देना है, सही मायनों में लोग मुझे दबाने की कोशिश करते हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मैं एक महिला हूं .सीएम सब जानते हैं. उन्होंने राजमाता से सीखा है इसलिए मैं उम्मीद करती हूं कि वे गलत नहीं बोलेंगे
यशोधरा राजे, पूर्व मंत्री- मप्र शासन
'राजघरानों ने देश में अच्छा काम किया है'
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'आजकल देश में राजघरानों पर टिप्पणी करने का दौर चल रहा है, पर मैं इससे सहमत नहीं हूं। मैं मानता हूं कि राजघरानों ने देश में अच्छा काम किया है। मै गुजरात से हूँ जहां बड़ौदा का गायकवाड राजघराना प्रसिद्ध है। गायकवाड राजघराने ने अपने शासनकाल में बहुत सराहनीय काम किए हैं। 'मैंने गायकवाड राजाओं के सुशासन, उनके कामकाज और नीतियों अध्ययन करवाया। वह कैसे उस जमाने में अच्छा काम करते थे, इस पर किताब तैयार करवाई। आज हम जिस मनरेगा की बात कर रहे हैं, जोधपुर राजघराने ने उस दौर में ही आदमी को रोजगार देने की पहल की थी।ग्वालियर के सिंधिया राजघराने ने उस जमाने में ट्रेन चलवाई, जब परिवहन के बारे में लोग ज्यादा सोचते भी नहीं थे। ग्वालियर के आसपास जो नेरोगेज की लाइन है, वह उन्होंने ही शुरू करवाई थी। जगह-जगह स्कूल, अस्पताल और खासतौर पर कन्याओं के लिए विद्यालय खोले। कॉलेज खुलवाए।
*प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
लोकसभा की तत्कालीन स्पीकर सुमित्रा महाजन के कक्ष में सत्तापक्ष –
विपक्ष के सारे दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में